दिलीप दवे बाड़मेर. स्कूली बच्चों को ऑनलाइन स्क्रीन तथा गेम के भंवरजाल से बचाने के लिए शिक्षा विभाग ने चेस इन स्कूल की शुरुआत तो कर दी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि विद्यालयों में शतरंज की चौसर कैसे बिछेगी। न तो बच्चों को शतरंज खेलना आता है और न ही शारीरिक शिक्षक इस खेल में पारंगत हैं। ऐसे में बिना प्रशिक्षण ही 19 नवम्बर से चेस इन स्कूल कार्यक्रम की शुरुआत कर दी।
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ऑनलाइन शिक्षा के चलन के बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ा है। ऑनलाइन गेम के भंवरजाल में बच्चों के तनाव में भी बढ़ोतरी हो रही है। बच्चों को मानसिक पोषण प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य की सरकारी स्कूलों में शतरंज खेल की शुरुआत की है। हाल ही में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने बीकानेर से इसकी विधिवत शुरुआत की है। इसमें बच्चे पढ़ाई के साथ द्यशहद्य और द्यमातद्य के खेल में भी पारंगत हो सकेंगे। अधिकांश सरकारी विद्यालयों में शारीरिक शिक्षक नहीं है। अन्य स्टाफ को भी शतरंज की एबीसीडी पता नहीं है। ऐसे में योजना के सफल क्रियान्वयन को लेकर अभी संशय बना हुआ है। हालांकि शिक्षकों का कहना है यदि विभाग की ओर से उचित प्रशिक्षण दिया जाता है तो खेल को सीखना कोई बड़ी बात नहीं है।
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यह है योजना- योजना के अनुसार इंदिरा गांधी जयंती पर 19 नवम्बर से सरकारी स्कूलों में शतरंज खेल सिखाया और खिलाया जाना शुरू किया गया है। इसके बाद नो बैग डे के तहत हर माह के तीसरे शनिवार को ऐसा होगा। इसे द्यचेस इन स्कूलद्य कार्यक्रम नाम दिया गया है।
प्रशिक्षण मिले तो सीख लेंगे विद्यालयों में बच्चों को शतरंज सिखाने को लेकर शारीरिक शिक्षकों की कमी है। प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षको के पद स्वीकृत नहीं है। जिन उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षकों के पद स्वीकृत है उनमें से 70 फीसदी पद रिक्त चल रहे हैं। ऐसे में प्रत्येक स्कूल से एक-एक शिक्षक को शतरंज खेलने के नियम व तरीको का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। शिक्षकों का कहना है उनको शतरंज खेल की कोई जानकारी नहीं है।
प्रशिक्षण की जरूरत- खेल अच्छा, पहले प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए विद्यार्थियों के लिए शतरंज खेल बहुत अच्छा है। इससे ऑनलाइन गेम खेलने की आदत छूटने के साथ दिमागी कसरत भी होगी। इस खेल को खेलने के नियमों की जानकारी देने के लिए प्रति स्कूल से शारीरिक शिक्षक या एक शिक्षक को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को सिखाया जा सके। - बसंतकुमार जाणी, जिलाध्यक्ष, राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ, रेस्टा
source https://www.patrika.com/barmer-news/don-t-know-the-gait-of-a-camel-the-steps-of-a-horse-7886698/
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