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4 पीढ़ियों वाले परिवार की तरह है पुराना और नया कोटा; यहां तजुर्बा और नई पीढ़ी का जोश

लाडपुरा के मालवीय परिवार में परंपरा और नई सोच का बराबर महत्व है। इस परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य बृजमोहन मालवीय 92 साल के हैं तो उनका प्रपौत्र शिवाशीष 3 साल का है। परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं। परंपरा के अनुसार सभी सदस्यों ने धार्मिक दीक्षा ले रखी है।

परिवार का 75 साल पुराना फर्नीचर का बिजनेस है। पहले रामपुरा में दुकान थी। अब नई पीढ़ी ने नए कोटा में ब्रांडेड फर्नीचर का शोरूम खोला है। इस परिवार की तरह ही हमारे पुराने कोटा और नए कोटा में भी अनुभव और भविष्य का संगम है।

परंपरा (पुराना) और आधुनिकता (नया) यानी जीवन के दो पैमाने। दोनों इतने अलग कि परंपरा को तोड़े बिना भविष्य की राह बनानी मुश्किल है। लेकिन हमारा कोटा इससे अलग है। हमारे शहर की तासीर ऐसी है कि पुरानी पीढ़ी की दी हुई विरासत के आधार पर ही नई पीढ़ी भविष्य के कोटा की बुनियाद रख रही है। यहां एक ओर बुजुर्गों की दी हुई परंपरा, विरासत और अनुभव है तो युवाओं का जोश, जीवटता और तकनीकी सोच है।

आत्मनिर्भरता... हमारे बुजुर्गों के दिए इस मंत्र से ही रही है कोटा शहर की पहचान
1.विरासत :
पुराने कोटा के माहौल में पीढ़ियों का अनुभव नजर आता है। यहां की गलियों में इतिहास के किस्सों से लेकर बुजुर्गों की दी हुई परंपरा नजर आती है। यहां के कई बाजार करीब 100 साल पुराने हैं, जो रियासत काल से ही पूरे शहर की जरूरत पूरी कर रहे हैं।

2. परम्परा
आत्मनिर्भरता हमारे बुजुर्गों की परंपरा रही है। यही वजह है कि रियासत काल से ही कोटा पूरे हाड़ौती का प्रमुख कंंेद्र रहा है। रियासत काल में कोटा साड़ियों की रंगाई-छपाई के लिए मशहूर था। वहीं आजादी के बाद बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और मिलें कोटा की पहचान बनीं। पुरानी पीढ़ी से मिली आत्मनिर्भरता की परंपरा की वजह से ही कोटा की पहचान औद्योगिक नगरी के रूप में बनी।

3. संघर्ष : शहर की पुरानी पीढ़ी के लोगों ने कड़ी मेहनत करके कोटा की अलग पहचान बनाई थी। यहां की फैक्ट्रियों में बने सामान की मांग देशभर में थी। आईएल जैसी फैक्ट्रियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपनी विश्वसनीयता के लिए जाने जाते थे।

नई सोच... जिसकी बदौलत आज विदेशों में भी जाना जाता है हमारे शहर का नाम

1. आधुनिकता: वहीं नए कोटा के लोगों में भविष्य की सोच दिखती है। यहां के लोग मल्टीस्टोरी और मॉल कल्चर में रचे बसे हैं। यहां बसे लोगों ने ही कोटा की तरक्की इबारत लिखी है, लेकिन इसमें बुजुर्गों की दी हुई सीख का बड़ा हाथ है।

2. तकनीक
पुरानी पीढ़ी की दी हुई सीख का ही नतीजा है कि नए कोटा के लोगों ने तरक्की की इबारत लिखी। यहां की कोचिंग इंडस्ट्री की बदौलत हमारा शहर आज देश-विदेश में भी पहचाना जाता है। शहर के इस हिस्से से हर साल करीब 50 हजार इंजीनियर और डॉक्टर निकलते हैं। यहां से निकले स्टूडेंट्स गूगल जैसी कई मल्टीनेशनल कंपनियों में अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

3. जीवटता : एक दौर ऐसा भी आया जब कई बड़े उद्योग बंद हो गए। एकबारगी तो शहर बर्बादी की कगार पर खड़ा हो गया। लेकिन कोटावासियों ने अपनी जीवटता के दम पर कोचिंग इंडस्ट्री खड़ी कर दी। आज कोचिंग इंडस्ट्री करीब 3 हजार करोड़ की हो चुकी है।



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4 पीढ़ियों वाले इस परिवार की तरह है हमारा पुराना और नया कोटा।


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